नरेश सोनी
दुर्ग। दुर्ग जिला ग्रामीण युवक कांग्रेस के अध्यक्ष सौरभ निर्वाणी को पार्टी से निष्कासित किए जाने के खिलाफ पूरा युवा कांग्रेस उठ खड़ा हुआ है। जिलेभर के कांग्रेस से जुड़े युवा निर्वाणी को हटाए जाने की खिलाफत करने लगे हैं। इस पूरे मामले को लेकर हालांकि कांग्रेस संगठन ने चुप्पी साध रखी है, लेकिन निर्वाणी को पार्टी से हटाए जाने के पीछे जो नई कहानी निकलकर आ रही है, वह कम चौंकाने वाली नहीं है।
शिखर पर पहुंचने की चाह तो सभी युवा रखते हैं, लेकिन ऐसे बिरले ही होते हैं, जो प्रत्येक दृष्टि से काबिल हों। जिला ग्रामीण युवक कांग्रेस के अध्यक्ष सौरभ निर्वाणी ऐसे ही युवा हैं और इसी वजह से आज वे पार्टी से बाहर हैं। बेहतर नेतृत्व क्षमता, सबको साथ लेकर चलने का गुण और आर्थिक दृष्टि से सम्पन्नता ऐसी वजह हैं, जो उनकी अपनी पार्टी में उनकी दुश्मन बन गई। दरअसल, अपने समर्थकों के साथ सदैव खड़े रहने और उनके साथ कदमताल करने वाले सौरभ निर्वाणी का कद जिले में लगातार बढ़ रहा था। हालात यह बनने लगे कि वरिष्ठ नेताओं को उनके रहते अपना भविष्य डूबता नजर आया। हाल ही में सम्पन्न पंचायत चुनाव के दौरान बेमेतरा से उनकी पत्नी जनपद सदस्य निर्वाचित हुईं और जल्द ही उन्हें जनपद अध्यक्ष का दावेदार भी बताया जाने लगा। निर्वाणी परिवार की बेेमेतरा की राजनीति में खासी पकड़ रही है और सौरभ निर्वाणी की पत्नी का जनपद अध्यक्ष बनने का मतलब कई नेताओं के भविष्य पर खतरा मंडराना था। इसलिए भी क्योंकि खुद सौरभ युवक कांग्रेस के जिलाध्यक्ष थे। इसी के चलते बेमेतरा के एक प्रभावशाली नेता ने भाजपा नेताओं के साथ मिलकर खेल खेला। इस प्रभावशाली नेता का एकमात्र उद्देश्य यही था कि किसी तरह श्रीमती निर्वाणी जनपद अध्यक्ष न बनने पाए। जब इसकी खबर सौरभ निर्वाणी को लगी तो उन्होंने अपने स्तर पर जिले और प्रदेश के कई वरिष्ठ नेताओं से सम्पर्क किया, किन्तु वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा के इस गृहजिले में सिर्फ उसी की चलती है जो वोरा गुट का सिपहसालार हो। सौरभ निर्वाणी ने वोरा को अपना आका नहीं बनाया था, इसलिए उनकी आवाज को तरजीह नहीं दी गई। अंत में थक हारकर निर्वाणी ने प्रेस कांफ्रेंस लेकर बेमेतरा के उस प्रभावशाली नेता के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इसकी शिकायत हुई और तत्काल सौरभ निर्वाणी को पार्टी से अलग कर दिया गया। यह दीगर बात है कि उनके निष्कासन के बाद भी उनकी पत्नी जनपद अध्यक्ष बन गईं। कांग्रेस के स्थानीय और प्रदेश संगठन के साथ ही यह उस प्रभावशाली नेता के चेहरे पर भी करारा तमाचा था।
इस पूरे मामले में एक सबसे बड़ा सवाल यह है कि कांग्रेस के जिम्मेदार ओहदे पर बैठा व्यक्ति विरोधी दल के साथ गठजोड़ करता है, किन्तु उसके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की जाती। जबकि कांग्रेस का जिम्मेदार सिपाही होने के नाते जब कोई व्यक्ति कांग्रेस का जनपद अध्यक्ष बनाने जीतोड़ मेहनत करता है तो उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है? इसी तरह के तमाम हालातों की वजह से ही आज कांग्रेस दुर्ग जिले में लगातार गर्त की ओर जा रही है। सौरभ निर्वाणी ऐसे पहले युवा नेता नहीं है, जिनके पर कतरने की कोशिश हुई है। इससे पूर्व युवक कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव पद पर रह चुके दीपक दुबे को भी निपटाने की पुरजोर कोशिशें की गई। राष्ट्रीय संगठन में काम करने वाले और कई राज्यों के प्रभारी रहे दुबे को नीचा दिखाने के लिए दुर्ग शहर युवक कांग्रेस का अध्यक्ष तक बना दिया गया था। पिछले कई चुनावों से वे लगातार विधानसभा और महापौर का टिकट मांगते रहे हैं। हर बार घिसे-पिटे चेहरों पर दांव लगाने वाली कांग्रेस ने, युवाओं की अच्छी खासी फौज होने के बावजूद उन्हें कभी महत्व नहीं दिया। इसकी इकलौती वजह सिर्फ यही है कि दीपक दुबे ने छत्तीसगढ़ के किसी नेता की बजाए मध्यप्रदेश के कद्दार नेता माधवराव सिंधिया को अपना आका बनाया। सिंधिया के स्वर्णवास के बाद हालांकि अब दुबे, उनके पुत्र ज्योतिर्रादित्य सिधिया के समर्थक हैं, किन्तु छत्तीसगढ़ के राजनीति में वे अब भी अपना मुकाम नहीं बना पाए हैं। कमोबेश यही हालात, दुर्ग जिला ग्रामीण कांग्रेस के महामंत्री राजेन्द्र साहू के साथ भी रहे। उन्हें भी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
दुर्ग जिले का यह राजनीतिक इतिहास रहा है कि यहां वरिष्ठ नेता कभी किसी अन्य नेता को उभरने नहीं देते। खुद मोतीलाल वोरा ने मुख्यमंत्री, केन्द्रीय मंत्री, राज्यपाल आदि रहते हुए अपने समर्थकों को अभी आगे नहीं बढ़ाया। आगे चलकर इसका खामियाजा उनके पुत्र अरूण वोरा को भुगतना पड़ा और वे लगातार विधानसभा चुनाव हारते चले गए। संभवत: इसी के बाद वोरा को यह समझ आया कि अब समर्थकों के लिए कुछ किया जाए। नतीजतन उन्होंने अपने एक समर्थक को वैशाली नगर विधानसभा का टिकट दिलवाया और दूसरे समर्थक को दुर्ग में महापौर का।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें