निजी विद्यालयों में पालकों का हो रहा है चौतरफा आर्थिक शोषण
भिलाई, 27 अप्रैल। निजी विद्यालयों में अध्ययनरत केजी-1 से लेकर क्लास-4 तक के विद्यार्थियों के परीक्षा परिणाम शनै:शनै: घोषित किए जा रहे है। परिणाम पत्र देने के तुरंत बाद विद्यालय प्राचार्य द्वारा पालकों से छुट्टियों की फीस भी मांगी जा रही है इससे पालकों एवं स्कूल प्रबंधन के मध्य तनाव की स्थिति है। पालकों का स्पष्ट कहना है कि जब दो महीने बच्चा स्कूल गया ही नही तो फीस किस बात की। इस संबंध में विद्यालय के प्राचार्य द्वारा यह तर्क दिया जा रहा है कि यह स्कूल प्रबंधन का आदेश है क्योंकि छुट्टियों की अवधि में भी छात्र स्कूल आए या न आए शिक्षक शिक्षिकाएं तो प्रतिदिन आते ही है। इसलिए उनका वेतन देने के नाम पर पालकों को छुट्टियों की फीस भी देनी पड़ेगी।
इस संबंध में चर्चा करते हुए कई पालकों ने बताया कि भिलाई टाऊनशिप के संचालित सभी निजी विद्यालयों के प्राचार्यों द्वारा परीक्षा प्रमाण पत्र देने के बाद छुट्टियों की अवधि की फीस मांगी जा रही है। कई विद्यालयों में जहां छात्र-छात्राओं को लाने ले जाने के लिए बसें संचालित होती है उनके पालकों से बस का किराया भी मांगा जा रहा है। पालकों का कहना है कि जब हमारे बच्चे ने बस का उपयोग ही किया ही नही और छुट्टियों में स्कूल गया ही नही तो फीस किस बात की दी जाए। इस विवाद का हल स्थानीय प्रशासन को करना चाहिए। दूसरी तरफ यह भी बताया जा रहा है कि लगातार अध्ययनरत छात्रों से पुन: प्रवेश के नाम पर एडमिशन फीस अलग से मांगी जा रही है। इस संबंध में पालकों का कहना है कि जब बच्चा उसी स्कूल में दो वर्षों से पढ़ रहा है तो कक्षा तीसरी के लिए एडमिशन फीस के नाम पर फीस क्यों मांगी जा रही है। एडमिशन फीस तो तभी लगती है जब छात्र अथवा छात्रा का पहली बार विद्यालय में प्रवेश हो रहा हो। यह विवाद आगे चलकर विकराल रूप धारण कर सकता है। यह भी देखने में आया है कि कई विद्यालयों के प्रबंधन द्वारा छात्र-छात्राओं को यूनीफार्म को स्कूल से ही खरीदने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। स्कूल द्वारा दिए गए यूनीफार्म एवं बाजार से खरीदे गए यूनीफार्म के कीमत में जमीन आसमान का अंतर है उसके बाद भी कई स्कूलों के प्राचार्य द्वारा यूनीफार्म नही मिलने पर एडमिशन फार्म नही देने की धमकी दी जाती है।
हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा जारी शिक्षा का अधिकार कानून के अंतर्गत यह हिदायत सभी निजी विद्यालयों के संचालकों को दी गई थी कि गरीबी रेखा के अंतर्गत देने वाले छात्र-छात्राओं के लिए विद्यालय में प्रवेश जरूरी किया जाए। केंद्र की यह मंशा है कि किसी भी गरीब का बच्चा बिना शिक्षा के न रह जाए परंतु इसके विपरीत निजी विद्यालयों के संचालक इस कानून की धज्जियां उड़ाते हुए मनमानी पर उतर आए है। टाऊनशिप के एक निजी विद्यालय में स्वीमिंग के नाम पर प्रति छात्र 1500 रुपए प्रतिमहीना शुल्क लिया जाता है। जबकि इस संबंध में छात्रों से जानकारी लेने पर यह ज्ञात हुआ है कि 15 दिन में एक बार उन्हें स्वीमिंग पुल में डुबाकर तुरंत निकाल दिया जाता है। बस इसी बात की 1500 रुपए प्रतिमाह लिया जाता है। इस प्रकार निजी विद्यालयों के संचालकों द्वारा पालकों का चौतरफा आर्थिक शोषण किया जाता है। शिक्षा के जगत में इस बात को लेकर रोष है कि राजनैतिक दलों द्वारा इस संबंध में पालकों के पक्ष में कोई बात नही की जाती है। अगर निजी विद्यालयों के संचालक यही रवैया अपनाए रहे तो धन संपन्न व्यक्ति ही अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा दिला सकता है वरना गरीब या मध्यम वर्गीय परिवार के लिए सरकारी स्कूल भी एक मात्र सहारा है।
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