बुधवार, 28 अप्रैल 2010

वर्षों से जांच नहीं हुई तराजू बाट की

दुर्ग, 28 अप्रैल। नापतौल विभाग में पदस्थ अधिकारियों-कर्मचारियों की उदासीनता के कारण थोक एवं फुटकर व्यावसायी वर्षों से ग्राहकों से लूट-खसौट कर रहे है। इस विभाग द्वारा 5-7 वर्षों में एक बार तराजु एवं बाट की नापतौल के नाम पर गिनती के कुछ दुकानों पर कार्रवाई की जाती है परंतु इतने बड़े जिले में जनसंख्या के आधार पर यदि वर्ष में भी एक बार जांच की जाए तो एक दुकानदार का क्रम अगले दस वर्षों तक नही आएगा। नापतौल विभाग की इसी उदासीनता के कारण फुटकर व्यवसायियों की पौ-बारह होते आ रही है। यदि किसी ग्राहक ने शिकायत भी की तो उसे बिल लाने के लिए कहा जाता है जबकि यह जग जाहिर है कि सब्जी बाजार में एक रुपए से लेकर के सौ रुपए तक के खरीदारी के लिए कभी भी बिल या रसीद का आदान-प्रदान नही होता। इस शुल्क के कारण फुटकर व्यवसायी वर्षों से मनमानी कर रहे है।
गौरतलब है कि नापतौल विभाग में पर्याप्त स्टाप का हवाला देकर वर्षों से जिले की दुकानों में उपयोग लाए जा रहे तराजु-बांट की जांच नहीं की जा रही है। यही कारण है कि कई दुकानदारों के पास 50 एवं 100 ग्राम का बाट नही होने पर वे उसका बराबर का पत्थर तराजु में रख देते है एवं ग्राहक को मजबूरन उनकी बात मानकर सामान की खरीदी करनी पड़ती है। अगर 50 ग्राम की जगह 40 ग्राम का भी वजह हुआ अथवा 100 ग्राम के स्थान पर 80 ग्राम का वजह हुआ तो ग्राहक विवाद से बचने के लिए तयशुदा कीमत देकर सामान ले जाता है। ग्राहक की इसी मजबूरी का फायदा उठाकर असंख्य दुकानदार आज लाखों में खेल रहे है। इस स्थिति का खामियाजा शहर के ग्राहकों को कम परंतु ग्रामीण अंचलों में रहने वाले लोगों को ज्यादा भुगतना पड़ रहा है। कुछ समय पहले इलेक्ट्रानिक तराजु का बाजार में पदार्पण हुआ है। तराजु वाले बाट में एक बार ग्राहक बाट के ऊपर लिखा हुआ वजन देखकर ही सामान लेता था परंतु इलेक्ट्रानिक तराजु में ऐसी कोई सुविधा नही। दुकानदार ने जो सामान तौल के दे दिया और इलेक्ट्रानिक तराजु ने जो संख्या बता दी उसे पर्याप्त मानकर ग्राहक को संतोष करना होगा।
कई ग्राहकों ने अपना नाम न छापने के शर्त पर बताया कि इलेक्ट्रानिक तराजु के द्वारा सामान तौलने पर यदि दुकानदार से पूछताछ की जाती है तो विवाद की स्थिति उत्पन्न हो जाती है इसलिए कई बार असहमति होते हुए भी सामान लेना पड़ता है। एक तरह से इलेक्ट्रानिक तराजु का ज्यादा उपयोग शहरों में हो रहा है परंतु ग्रामीण अंचलों में आज भी पुराने तराजु बाट जिनका वर्षों से सत्यापन नही हुआ उन्हीं के द्वारा ग्राहकों को सामान तौलकर दिया जाता है। सबसे विषम परीस्थिति का सामना ग्राहकों को सब्जी बाजार में करना पड़ता है। साप्ताहिक सब्जी बाजारों में वजह के नाम पर पूछताछ करने पर दुकानदार तुरंत सामान वापस ले लेता है और यह कहते हुए ग्राहक को उपेक्षित कर देता है जहां से लेना है ले लो इसी स्थिति का सामना ग्राहक को हर जगह करना पड़ता है। नापतौल विभाग में पदस्थ कर्मचारियों द्वारा नियमित बाजारों में न सही कम से कम साप्ताहिक बाजारों में उपयोग में लाए जा रहे तराजु बाट की जांच को समय-समय पर करनी चाहिए। नागरिकों का मानना है कि वर्षों से संचालित अनाज दुकानों में नापतौल विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों की आर्थिक सांठगांठ होने के कारण उन्हें नियमित जांच का सामना नही करना पड़ता। 90 प्रतिशत से अधिक किराना दुकानों एवं नियमित सब्जी बाजारों में दस वर्ष से अधिक पुराने तराजु बाट का उपयोग किया जा रहा है।
छोटी-छोटी बात पर धरना प्रदर्शन की धमकी-चमकी देने वाले कतिपय राजनीतिक दल के कार्यकर्ता इस मामले में आज तक क्यों चुप्पी साधे हुए है यह जांच का विषय है। उपभोक्ता फोरम के सदस्य भी इस संबंध में जांच करना कोई जरूरी नही समझते। सब्जी बाजार में तराजु बाट द्वारा लूट-खसौट करने की शिकायत को ग्राहक उपभोक्ता फोरम के पास लेकर जाए भी तो कैसे न दुकानदार सब्जी का बिल देना चाहता है न कभी किसी ग्राहक ने 25-50 रुपए या अधिकतम 100 रुपए की सब्जी खरीदी का बिल मांगने की जहमत नही उठाई होगी। ग्राहकों की इसी साफगोई एवं ईमानदारी का फायदा उठाकर वर्षों से फुटपाथ पर भी सब्जी बेचने वाले लोग आज लाखों में खेल रहे है।

०००

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें