दुर्ग, 26 अप्रैल। सूचना के अधिकार के अंतर्गत जानकारी चाहने वालों को संबंधित विभाग के प्रमुख अधिकारियों द्वारा बैरंग वापस लौटाया जा रहा है। शासन के शिक्षा विभाग, सर्व शिक्षा अभियान कार्यालय, आदिमजाति कल्याण विभाग, फुड विभाग एवं खनिज विभाग में सैकड़ों आवेदन लंबित पड़े है। अधिकारियों को डर है कि सही जानकारी देने से उनकी करतूतो की पोल खुल जाएगी। शिक्षा विभाग में तो एक ही रटा रटाया जवाब मिलता है कि स्टॉफ के अभाव में अभी जानकारी देना संभव नही है। जानकारी देने में कितना समय लगेगा यह अभी नही बताया जाता। इसी प्रकार आदिमजाति कल्याण विभाग के प्रमुख अधिकारी के बारे में बताया जाता है कि वे प्राय: राजधानी में ही रहते है इसलिए उनकी बिना अनुमति के जानकारी देना संभव नही है। फुड एवं खनिज विभाग में पदस्थ अपील अधिकारी प्राय: विभिन्न क्षेत्रों के दौरे पर रहते है इसलिए आवेदक और उनमें आमना-सामना नही होता।
गौरतलब है कि जब से सूचना के अधिकार पर कार्रवाई शुरू हुई है तब से प्रत्येक सरकारी विभाग के प्रमुख अधिकारी इस कानून की प्रति आमतौर पर अपनी नाराजगी व्यक्त करते है। नागरिकों के लिए यह कानून तो एक मौलिक कानून बनकर उभरा है परंतु अधिकारियों के लिए यह गले में फंसी उस फांस की तरह है जिसे न निगला जा सकता है न बाहर किया जा सकता है। शिक्षा विभाग के विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार आवेदकों द्वारा प्राय: शिक्षाकर्मियों की भर्ती के संबंध में जानकारियां मांगी जाती है। यह सभी जानते है कि शिक्षाकर्मियों की भर्ती में कितना बड़ा फर्जीवाड़ा चला है इसलिए जानकारी देने के लिए विभाग में पदस्थ लोग हिलाहवाली करते है। शिक्षा विभाग में ही कई ऐसे आवेदन लंबित है जिनका संबंध कर्मचारियों की पदोन्नति से है। यह प्रक्रिया कई बार राजनीतिक दबाव के कारण तो कई बार उच्च पदस्थ अधिकारियों की जानकारी में अपनाई जाती है इसलिए इसे गोपनीय करार देकर आवेदक को बैरंग लौटाया जाता है। शिक्षा विभाग में कई ऐसे कर्मचारी है जिन्हें समय के पूर्व पदोन्नत कर दिया गया है। ऐसे कर्मचारियों को अपने कार्य क्षेत्र में जाकर पदस्थ रहने का अधिकार है लेकिन बड़े अधिकारियों की विशेष कृपा से वे जिला मुख्यालय में ही सेवाएं दे रहे हैं। सूचना के अधिकार के अंतर्गत इस संबंध में जानकारी मामले पर आवेदक को गोपनीयता का हवाला देकर वापस कर दिया जाता है। इस प्रकार फुड एवं खनिज विभाग में तीन अधिकारियों को सूचना का अधिकार के अंतर्गत जानकारी देने के लिए अपीलीय अधिकारी बनाया गया है वे प्राय: विभिन्न क्षेत्रों के दौरे पर रहते है। यह संभव है कि उनकी गैर मौजूदगी में किसी अन्य कर्मचारी को विकल्प के रूप में तैनात किया होगा परंतु बड़े अधिकारी की स्वीकृति न होने पर वह भी जानकारी देने से इंकार कर देता है। खनिज एवं फुड विभाग की गारगुजारियों के बारे में यदा-कदा प्रचार माध्यमों में जो जानकारियां मिलती है उसके अनुसार इस विभाग में छोटा सा छोटा कर्मचारी भी किसी न किसी घोटाले में लिप्त है इसलिए इन विभागों में सूचना के अधिकार को महत्व नही दिया जा रहा है। कई बार आवेदक को बैरंग लौटने के कारण वह हताश एवं निराश हो जाता है। इसलिए इस व्यवस्था को तो सुधरना ही नही है यह मानकर दोबारा वह सूचना के अधिकार का प्रयोग नही करता। समाज के कई बुद्धिजीवी नागरिकों ने इस संबंध में चर्चा के दौरान कहा कि शासन-प्रशासन को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि सूचना का अधिकार से संबंधित कार्रवाई को चुस्त-दुरस्त किया जाए एवं जो अधिकारी अथवा कर्मचारी इसका पालन नही करते उन्हें आर्थिक रूप से दंडित किया जाना चाहिए।
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kya yahi hai suchna ka adhikar
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