भिलाई, 27 अप्रैल। नगर में रसोई गैस की कालाबाजारी एक बार फिर बढ़ गई है। यह कहना गलत होगा कि गैस एजेंसी में कार्यरत कर्मचारियों की वजह से ही कालाबाजारी बढ़ रही है बल्कि हकीकत यह है कि गैस एजेंसियों के संचालकों के संरक्षण के कारण एवं खाद्य विभाग में पदस्थ अधिकारियों की लापरवाही के कारण इस प्रथा को बल मिला है। दुर्ग-भिलाई जैसे जुड़वा शहर में रसोई गैस को व्यवसायिक रूप में उपयोग कर दोहरा मुनाफा कमाया जा रहा है। इस संबंध में पुलिस को जानकारी होने के बाद भी वह सारा दारोमदार खाद्य विभाग पर छोड़कर अपना पल्ला झाड़ लेती है।
गौरतलब है कि शहर में आकाशगंगा व्यावसायिक परिसर, सेक्टर-4, सेक्टर-10, हाऊसिंग बोर्ड एवं पुरानी भिलाई में गैस एजेंसियों की आबंटित शाखाएं है। इन शाखाओं में इतनी पर्याप्त मात्रा में गैस सिलेंडर आते है कि अगर नियमानुसार उपभोक्ताओं को इसका वितरण किया जाए तो कहीं कोई कमी नही होगी। गैस एजेंसी के संचालक स्वयं रोज नए-नए नियम बनाते है और अपने कर्मचारियों द्वारा इन नियमों की आड़ में रसोई गैस की कालाबाजारी करवाते है। उदाहरण स्वरूप कुछ समय पहले गैस रिफ्लिंग का समय 30 दिन निर्धारित किया गया था परंतु कुछ ही दिन बाद इस अवधि को 15 दिन घोषित कर दिया। दूसरी तरफ केंद्रीय खाद्य एवं पेट्रोलियम मंत्रालय द्वारा जारी बयान में यह सुनने में आया कि गैस रिफ्लिंग की कोई अवधि नही होती बल्कि एक रिफ्लिंग के बाद दूसरे ही दिन नई रिफ्लिंग के लिए आरक्षण करवाया जा सकता है। स्थानीय तौर पर रसोई गैस की कोई किल्लत न होने के बाद भी गैस एजेंसियों के संचालकों द्वारा मुंबई से गाड़ी नही आई है बताकर नोटिस बोर्ड पर गैस का स्टाक खत्म बताया जाता है। विश्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार 50 प्रतिशत भी रसोई गैस का वितरण नियमानुसार नही हो रहा है बल्कि मात्र 30 से 35 प्रतिशत का वितरण उपभोक्ताओं को करके शेष रसोई गैस औद्योगिक क्षेत्र में स्थित छोटी-बड़ी इकाईयों को ब्लैक में बेचने जाती है। 320 रुपए एक गैस सिलेंडर को 500 रुपए में बेचने की शिकायतें मिली है। आकाशगंगा स्थित एक होमएपलायंस में रसोई गैस का उपयोग चारपहिया वाहन चलाने के लिए किया जाता है। इस एवज में एक गाड़ी मालिक से 5 से 6 सौ रुपए की वसूली की जाती है। इस संस्थान में दो बार खाद्य विभाग द्वारा छापा भी मारा जा चुका है। इसके बावजूद भी अपने परमानेंट ग्राहकों को गैस की आपूर्ति इस संस्थान द्वारा की जाती है। इसी प्रकार हाऊसिंग बोर्ड क्षेत्र में इंडियन आयल अधिकृत एक मात्र दुकान से ग्राहकों को कम और कंपनी मालिकों को ज्यादा रसोई गैस की आपूर्ति की जाती है। लगभग यही स्थिति सेक्टर-10 एवं भिलाई-3 के दुकानों की भी है। खाद्य विभाग द्वारा हाल ही में सेक्टर-4 स्थित इंडियन आयल अधिकृत गैस दुकान में छापामार कर 100 से अधिक सिलेंडर जब्त किए गए थे जिनका लिखा पढ़ी में कोई रिकार्ड नही था।
दूसरी ओर खाद्य विभाग में पदस्थ अधिकारियों की उदासीनता के कारण रसोई गैस की कालाबाजारी को बढ़ावा मिल रहा है। आज शहर में आकाशगंगा स्थित कई चाट संचालक जो हाल ही में जिला प्रदेशों से आए है खुलकर रसोई गैस का उपयोग कर रहे है। उनके द्वारा इस प्रकार रसोई गैस का खुलेआम व्यवसायिक उपयोग करने की जानकारी खाद्य विभाग को न हो ऐसा नही हो सकता बल्कि खाद्य विभाग के कई कर्मचारी इन चाट दुकानों में आते जाते रहते है। इसी प्रकार पाव भाजी, चिकन चिल्ली आदि ठेलों में बनाने वाले फुटकर व्यवसायी भी रसोई गैस का उपयोग व्यावसायिक रूप से कर रहे है। बताया जाता है कि इन सभी को किसी न किसी रूप में खाद्य विभाग का संरक्षण प्राप्त है। इस संबंध में किसी भी राजनैतिक दल के प्रतिनिधि द्वारा आवाज न उठाना अनेक रहस्यों को जन्म देता है।
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