बुधवार, 5 मई 2010

कांग्रेस पार्षद हुए दो फाड़

दुर्ग, 05 मई। शहर कांग्रेस के ढुलमुल रवैय्ये का खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ रहा है। कांग्रेस के पार्षद दो फाड़ हो गए हैं और दोनों की अपनी ढपली-अपना राग चल रहा है। तमाम हालातों से वाकिफ होने के बावजूद तमाशबीन बने शहर कांग्रेस के अध्यक्ष अरूण वोरा की भूमिका संदिग्ध नजर आने लगी है। जबकि शहर अध्यक्ष होने के नाते उन्हें इस पूरे मामले का पटाक्षेप करना था।

ताजा मामला ठगड़ा बांध में उत्खनन से उपजा विवाद है। पिछले दिनों इस बांध का मसला सामने आने के बाद एक जांच समिति बनाई गई थी। इस समिति ने कल ही ठगड़ा बांध में मुरूम उत्खनन को जायज ठहराया। इसके विरोध में कांग्रेस पार्षदों का एक खेमा जब अरूण वोरा से मिला तो उन्होंने इस तरह की किसी जांच समिति की जानकारी होने से ही इनकार कर दिया। जबकि समिति के गठन से संबंधित खबरें लगभग सभी अखबारों में प्रमुखता से छपी थी। क्या यह संभव है कि श्री वोरा को इतने महत्वपूर्ण मामले की जांच के लिए बनी समिति की जानकारी न हो? कांग्रेस से जुड़े कई लोगों का कहना है कि पूर्व विधायक अरूण वोरा जानबूझकर विवादास्पद मसलों से पल्ला झाड़ लेते हैं। जब कभी ऐसा मौका आता है तो वे प्रत्येक पक्ष की बातों को जायज ठहराते हैं। इससे हर पक्ष को यही लगता है कि उन्हें अरूण वोरा का समर्थन हैं। कल जब कई कांग्रेस पार्षदों ने पूर्व पार्षद मदन जैन की शिकायत की तो अरूण वोरा ने उनकी हाँ में हाँ मिलाई, लेकिन आज श्री जैन का बयान आया कि अरूण वोरा की जानकारी में ही इस समिति का गठन हुआ था। इस मामले में श्री वोरा ने अपना पक्ष रखने की जहमत नहीं उठाई है, इसलिए कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ, यह सामने नहीं आ रहा है। वैसे, कल शाम वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा से मिलने रवाना हुए कांग्रेसियों का दल आज दोपहर तक झासी तक पहुंच पाया था। सम्पर्क करने पर एक कांग्रेस नेता ने कहा कि वे देर शाम दिल्ली पहुंच रहे हैं और श्री वोरा से उनकी मुलाकात कल सुबह ही हो पाएगी।

बताते हैं कि इस पूरे विवाद की जड़ कुल मिलाकर नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष का पद रहा है। पार्षद दल के विभाजन की वजह भी यही है। बताते हैं कि मदन जैन, आरएन वर्मा, अलताफ अहमद और राजकुमार नारायणी समेत कई अन्य नेता नहीं चाहते थे कि देवकुमार जंघेल नेता प्रतिपक्ष बनें। इसलिए जंघेल के नाम का जमकर विरोध किया गया। इस विरोध के चलते कई पार्षदों को जंघेल का स्वस्फूर्त समर्थन मिला। यदि श्री वोरा चाहते तो उसी वक्त मतभेद और मनभेद का निपटारा करवा सकते थे, किन्तु उन्होंने ऐसी कोई पहल नहीं की। नतीजतन गुटबाजी और विवाद बढ़ता गया। श्री जंघेल ने जब ठगड़ा बांध का मसला उठाया तो उनका विरोध करने के लिए मदन जैन एंड पार्टी ने भी मोर्चा संभाल लिया और अंत में ठगड़ा बांध मामले को क्लिनचिट दे दी।

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